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✨सूरदास जयंती – Surdas Jayanti

सूरदास जयंती – Surdas Jayanti

Surdas Jayanti Date: Sunday, 12 May 2024

सूरदास जयंती - Surdas Jayanti
✨सूरदास जयंती – Surdas Jayanti

सूरदास जयंती, संत सूरदास के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, महान संत सूरदास जी की जयंती वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष पंचमी को मनायी जाती है।

सूरदास जयंती कैसे मनाई जाती है?
सूरदास जयंती को मनाना एक तरह से भगवान कृष्ण का उत्सव है। साहित्यिक क्षेत्र में सूरदास का कार्य कृष्ण के लिए है। सूरदास जयंती के जन्मदिन के उपलक्ष्य में भगवान कृष्ण के जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाए जाते हैं, उनके द्वारा बनाई गई कविताएं और गीत अभी भी हिंदू भक्ति संगीत का एक अविश्वसनीय हिस्सा है, जो की सूरदास जयंती के दिन गाये जाते हैं।

सूरदास जयंती का महत्व
सूरदास जयंती को एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में मनाई जाती है। सूरदास जी जन्म से ही दृष्टिहीन थे, लेकिन फिर भी उन्होंने भगवान कृष्ण को समर्पित भजन एवं गीतों की उत्कृष्ट रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जी ने हजारों से अधिक रचनाओं का निर्माण किया है।

शुरुआत तिथिवैशाख शुक्ल पंचमी
कारणसूरदास, भगवान कृष्ण
उत्सव विधिमंदिर में प्रार्थना, घर में पूजा
सूरदास जयंती – Surdas Jayanti

Surdas Jayanti in English

Surdas Jayanti is celebrated to mark the birthday of Saint Surdas. According to the Hindu calendar, the birth anniversary of great saint Surdas ji is celebrated on Shukla Paksha Panchami in the month of Vaishakh.

सूरदास जयंती कब है ?

रविवार, 12 मई 2024

सूरदास जी के जीवन से जुड़ें कुछ महत्वपुर्ण तथ्य

25 April 2023

• सूरदास ने हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु अनेकों प्रयास किए। इस लड़ाई में उनका एकमात्र हथियार भक्ति था।

• सूर सागर जैसी प्रसिद्ध साहित्यिक रचना के अलावा, सूरदास जी को अन्य साहित्यिक कार्य जैसे सुर-सारावली और साहित्य-लाहिड़ी के लिए भी जाना जाता है।

• ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी की ख्याति मुगल दरबारों में तक व्याप्त थी। जिसके चलते उस समय में मुगल बादशाह अकबर में भी उनके बहुत बड़े प्रशंसक हुआ करते थे।

• सूरदास के जन्म और मृत्यु के संबंध में इतिहासकारों और विद्वानों का कोई एक मत नहीं है। एक रिपोर्ट के अनुसार सूरदास का जन्म 1479 ईस्वी में हुआ था और सन 1586 में उन्होंने अपने शरीर का त्याग कर दिया दिया था।

• किंवदंती के अनुसार, संत सूरदास जी को सपने में भगवान कृष्ण के दर्शन हुए और श्री कृष्ण ने उन्हें वृंदावन जाने के लिए कहा। वहाँ उन्हें श्री वल्लभाचार्य के रूप में एक गुरु मिले, जो भगवान कृष्ण के प्रबल भक्त थे। हिंदू शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद, सूरदास ने वृंदावन में भगवान कृष्ण को समर्पित भक्ति गीत गाना शुरू किया।

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