कोकिला व्रत – Kokila Vrat
Kokila Vrat Date: Saturday, 20 July 2024
कोकिला व्रत आषाढ़ पूर्णिमा के दिन किया जाता है पर इसका आरंभ एक दिन पहले से ही आरंभ कर दिया जाता है। कोकिला व्रत का विशेष महत्व दांपत्यु सुख एवं अविवाहितों के लिए जल्द विवाह करने मे वरदान है।
आषाढ़ के अधिक मास होने पर यह व्रत प्रथम आषाढ़ की पूर्णिमा से दूसरे आषाढ़ की पूर्णिमा तक किया जाता है। व्रत के दौरान गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों में किया स्नान अधिक पुण्यदाय होता है।
कोकिला व्रत में भोजन एक बार ही ग्रहण करें, धरती पर शयन करें, ब्रम्हचर्य का पालन करें तथा पराई निंदा से बचें। कुछ मान्यताओं के अनुसार, व्रत के दिन महिलाएँ जड़ी-बूटियों से स्नान करतीं हैं, अतः व्रत एवं औषधि के प्रभाव से महिलाएँ को सौन्दर्य और रुप की प्राप्ति होती है।
मुख्यतया पर गुरु पूर्णिमा एवं कोकिला व्रत एक ही दिन होती है, परन्तु कभी-कभी चतुर्दशी तिथि के प्रारंभ होने के आधार पर कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा से एक दिन पूर्व भी हो सकता है।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से सौन्दर्य और रुप की प्राप्ति होती है। इस दिन जड़ी-बूटियों से स्नान करना उत्तम होता है। कुछ स्थानों पर कोयल का चित्र अथवा मूर्ति स्वरुप को मंदिर अथवा ब्राह्मण को भेंट भी किया जाता है।
शुरुआत तिथि | आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा |
उत्सव विधि | व्रत, पूजा, भजन कीर्तन। |
कोकिला व्रत पौराणिक कथा
कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था
कोकिला व्रत से जुड़ी कथा का संबंध भगवान शिव एवं माता सती से जुड़ा है। माता सती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए लम्बे समय तक कठोर तपस्या को करके उन्हें पाया था। कोकिला व्रत कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार देवी सती ने भगवान को अपने जीवन साथी के रुप में पाया। इस व्रत का प्रारम्भ माता पार्वती के पूर्व जन्म अर्थात सती रुप से है।
देवी सती का जन्म राजा दक्ष की बेटी के रुप में होता है। राजा दक्ष को भगवान शिव अत्यधिक अप्रिय थे। राजा दक्ष एक बार यज्ञ का आयोजन करते हैं। इस यज्ञ में वह सभी लोगों को आमंत्रित करते हैं ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवी देवताओं को आमंत्रण मिलता है किंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया जाता है।
ऐसे में जब देवी सती को इस बात का पता चलता है कि उनके पिता दक्ष ने सभी को बुलाया लेकिन अपनी पुत्री को नहीं। तब सती से यह बात सहन न हो पाई। सती ने शिव से आज्ञा मांगी कि वे भी अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहतीं हैं। शिव ने सती से कहा कि बिना बुलाए जाना उचित नहीं होगा, फिर चाहें वह उनके पिता का घर ही क्यों न हो। सती शिव की बात से सहमत नहीं होती हैं और जिद्द करके अपने पिता के यज्ञ में चली जाती हैं।
वह शिव से हठ करके दक्ष के यज्ञ पर जाकर पाती हैं, कि उनके पिता ने उन्हें पूर्ण रुप से तिरस्कृत किया है। दक्ष केवल सती का ही नही अपितु भगवान शिव का भी अनादर करते हैं उन्हें अपशब्द कहते हैं। सती अपने पति के इस अपमान को सह नही पाती हैं और उसी यज्ञ की अग्नि में कूद जाती हैं। सती अपनी देह का त्याग कर देती हैं।
भगवान शिव को जब सती के बारे में पता चलता है तो वह यज्ञ को नष्ट कर, दक्ष के अहंकार का नाश करते हैं। सती की जिद्द के कारण प्रजापति के यज्ञ में शामिल होने तथा उनकी आज्ञा न मानने के कारण वह देवी सती को भी श्राप देते हैं, कि हजारों सालों तक कोयल बनकर नंदन वन में घूमती रहें।
इस कारण से इस व्रत को कोकिला व्रत का नाम दिया गया क्योंकि देवी सती ने कोयल बनकर हजारों वर्षों तक वहाँ तप किया। फिर पार्वती के रूप में उत्पन्न हुई और ऋषियों की आज्ञानुसार आषाढ़ के एक माह से दूसरे माह व्रत रखकर शिवजी का पूजन किया। जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती के साथ विवाह कर लिया। अतः यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ पति प्राप्त करने वाला माना जाने लगा।
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