Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: भादो की पहली गणेश चतुर्थी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, घर में बनी रहेगी खुशहाली!

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Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha

भाद्रपद माह की पहली गणेश चतुर्थी पर व्रत रखकर महिलाएं संतान प्राप्त और उसके अच्छे वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं. इसे पर्व को हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है.

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: हिन्दू धर्म में हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है. हर मास में पड़ने वाली चतुर्थी का अपना अलग महत्व होता है.

ऐसे ही भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भी व्रत पड़ता है. इसे हेरम्ब संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत के नाम से जाना जाता है

. इस दिन भगवान गणेश की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है. इस दिन पूजा करने के साथ व्रत रखने से जीवन के हर एक दुख दूर हो जाते है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

इस व्रत की कथा सुनने या पढ़ने से लोगों के मन को शांति मिलती है और जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं.

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी 22 अगस्त दिन गुरुवार को दोपहर 01 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी और 23 अगस्त दिन शुक्रवार को सुबह 10 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी.

गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रदेव की पूजा का विधान है

और चंद्रोदय रात 8 बजकर 51 मिनट पर होगा. इसलिए हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी का व्रत 22 अगस्त को किया जाएगा. पूजा के लिए सही समय शाम 5 बजकर 17 मिनट से रात 9 बजकर 41 मिनट तक है.

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha
Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी के दिन दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें. इसके बाद हाथों में एक फूल और थोड़ा सा अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें और फिर इसे गणपति जी को चढ़ा दें. इसके बाद गणेश जी की पूजा आरंभ करें.

सबसे पहले जल से आचमन करने के बाद फूल, माला, दूर्वा, सिंदूर, रोली, कुमकुम आदि चढ़ा दें. इसके बाद मोदक, बूंदी के लड्डू के साथ मौसमी फलों का भोग लगाएं. इसके बाद घी का दीपक जलाकर हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा सुनें.

गणेश चतुर्थी व्रत कथा

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह के समय की बात है. विवाह की तैयारियां की जा रही थीं. सभी देवी-देवताओं, गंधर्वों और ऋषियों-मुनियों को विवाह के लिए निमंत्रण दिया जा रहा था. लेकिन गणेश जी को इस विवाह के लिए आमंत्रित नहीं किया गया.

विष्णु जी की बारात के समय सभी देवी-देवताओं ने देखा कि भगवान गणपति बारात में कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं. सबने जानना चाहा कि गणपति को विवाह का बुलावा नहीं दिया गया है या वो अपनी मर्जी से विवाह में नहीं आए हैं. देवताओं ने भगवान विष्णु से गणेश जी की अनुपस्थिति का कारण पूछा.

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: भगवान विष्णु ने उत्तर दिया भगवान शिव को न्यौता दिया गया है. गणेश उनके साथ आना चाहें तो आ सकते हैं. साथ ही यह भी कहा कि गणेश बहुत अधिक भोजन करते हैं. ऐसे में किसी और के घर ले जाकर हम उनको पेट भर भोजन कैसे करवाएंगे.

उनकी यह बात सुनकर एक देवता ने यह सुझाव दिया कि गणपति को बुला लेते हैं, लेकिन उनको विष्णुलोक की रक्षा में यही छोड़ कर चले जाएंगे. इससे न बुलाने की चिंता भी खत्म हो जाएगी और उनके खाने की चिंता भी खत्म हो जाएगी. सबको यह उपाय पसंद आया.

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश सभी देवताओं के कहने पर वहां रुक गए लेकिन वो क्रोधित थे. तभी देवऋषि नारद वहां आए और उनसे बारात में न चलने का कारण पूछा. गणेश ने कारण बताया. साथ ही यह भी बताया कि वो भगवान विष्णु से गुस्सा हैं. देवऋषि ने गणेश जी को कहा कि बारात के आगे अपने चूहों की सेना को भेजकर रास्ता खुदवा दो.

तब सबको आपकी अहमियत समझ आएगी. चूहों की सेना ने गणपति की आज्ञा पाकर आगे से जमीन खोखली कर दी. भगवान विष्णु का रथ वहीं जमीन में धंस गया. बहुत कोशिश करने पर भी कोई भी देवता उस रथ को गड्ढे से न निकाल सके.

Heramb Ganesh Chaturthi Vrat Katha: देवऋषि ने देवताओं से कहा कि विघ्नहर्ता गणेश को क्रोधित करने के कारण ऐसा हुआ है. इसलिए अब उन्हें मनाना चाहिए. सभी देवता गणेश के पास पहुंचे और उनका पूजन किया. इसके बाद रथ गड्ढे से निकला, लेकिन उसके पहिए टूट गए थे.

फिर से देवता सोच में पड़ गए कि अब क्या करें. पास के खेत से खाती को बुलाया गया. खाती ने गणेश जी की वंदना कर पहिए ठीक कर दिए. जिसके बाद सभी देवी-देवताओं को विघ्नहर्ता गणेश को सर्वप्रथम पूजने का महत्व समझ में आया. उसके बाद विवाह विघ्नों के बिना सम्पूर्ण हुआ था.

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